सुथार (संस्कृत: सूत्रधार) भारत में एक जाति है। मूलतः इस जाति के लोगों का काम है लकड़ी की अन्य वस्तुएँ बनाना है। इस जाति के लोग विश्वकर्मा को अपने ईष्ट देवता मानते हैं। सुथार शब्द का प्रयोग ज्यादातर राजस्थान में ही किया जाता है।
Suthar Caste का इतिहास क्या है ?
सुथार नाम सुत्रधार का तद्भव रूप हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूत्रधार विश्वकर्मा के पुत्र माया के वंशज हैं। स्कंद पुराण में उनके पांच बच्चे थे मनु, माया, तवस्तार, शिल्पी और विश्वजना एवं ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा समुदाय के लोग उनके पांच उप-समूहों के अग्रदूत थे।
सुथार समाज के बारे में जानकारी
लकड़ी के कार्य करने वाले कारीगरों को ‘सुथार, खाती, कारीगर, बढ़ई, विणाक’ आदि नामों से जाना जाता है। इनकी उत्पत्ति विश्वकर्मा से मानी जाती है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने पोते विश्वकर्मा से महल, मकान और नगर बनाने के लिये कहा।
विश्वकर्मा ने कहा कि मुझे इनकी तरकीब बताओ। तब ब्रह्माजी ने उसे नक्शा बनाकर दिया। उसे देखकर उसे समुद्र में लंकापुरी की रचना की। जब उसका कार्य पूरा हो चुका तो ब्रह्माजी को सूचना देने गये। मार्ग में यह सूझा कि अगर ब्रह्माजी ने नक्शा वापिस ले लेंगे तो बाद में मैं क्या करूंगा!
इस प्रकार सोचते हुए वह उस नक्शे को खा गया जिससे उसको विभिन्न प्रकार के नक्शे सूझने लगे और शिल्पशास्त्र की रचना कर जगह जगह इमारतें बनाने लगे। इसके बाद विष्वकर्मा ने कई कारीगरी के काम किये और उन्हीं के कई वंशज कारीगर हुए। कला की उत्पत्ति भी विश्वकर्मा से ही हुई है।
जैसलमेर क्षेत्र में सुथारों की बाहुलता के बारे में प्रचलित क्या है?
एक बार लोद्रवे में जब जादमजी राज्य करते थे और उन्होंने एक मंदिर बनवाया जिसमें 4 खाती और 26 राजपूत कार्य करते थे। जब मंदिर पूरा बन गया तो जादिमजी ने इनको इनाम मांगने के लिये कहा। तब इन्होंने कहा कि हमारे यहां सिर्फ चार घर ही हैं, इन 26 राजपूतों को भी हमारे साथ मिला दिया जाय जिससे हमारी न्यात हो जावे।
राजा ने कहा कि तुम जिन-जिन को अपने साथ मिलाना चाहते हो उनके रात को सोते हुए में तिलक कर दो। उन्होंने ऐसा ही किया। प्रातः राजा ने उन छब्बीस राजपूतों को इनकी न्यात में सम्मिलित कर दिया। सोते में तिलक किया था जिससे ये ‘सुतार’ कहलाये, इन्हीं को अब सुथार कहा जाता है।
दूसरा यह भी प्रचलित है कि ये वास्तुकला के ज्ञाता हैं। ये काष्ठ का काम करने से ‘काष्ठी’ कहलाये और यही काम करने से ‘सुथार’ कहलाये, सुथार सूत्रधार का अप्रभंष है। सूूत से नाप कर कार्य करने के कारण भी इन्हें सूत्रधार कहा जाता है।
मुंशी देवीप्रसाद ने मारवाड़ मर्दुमषुमारी में इनकी अलग न्यातों का वर्णन इस प्रकार किया है-
- सुथार या बीसोतर, जिनके 120 गोत्र हैं ।
- मेवाड़ी खाती, इनके 56 गोत्र हैं ।
- पूरबिया खाती, इनके 55 गोत्र हैं ।
- ढिल्लीवाली, इनके 56 गोत्र हैं ।
- जांगड़ा खती, इनके 1444 गोत्र हैं ।
जैसलमेर क्षेत्र में सुथार ‘आथ’ पर कार्य करते हैं । कृषि उपकरण से लेकर तोरण तक इन्हीं के हाथों से तैयार किये जाते हैं । इनका धर्म वैष्णव है । शक्ति के भी उपासक हैं । विश्वकर्मा व सावित्री की पूजा करते हैं ।
गणेशजी, हनुमानजी, रामदेवजी व पाबूजी को भी मानते हैं । गांवों में रहने वाले सुथार खेती का कार्य भी करते हैं । रीति रिवाज अन्य जातियों से मिलते-जुलते हैं । जो कि लोहार, बढ़ई के गोत्रों (कुलों) के थे।
इस पोस्ट में आपको Suthar Caste के बारे में जानकारी दी गई है।