मूंगफली की खेती कैसे करें : जानें मूंगफली की उन्नत खेती और लाभ

रामराम किसान भाइयो, मूंगफली की खेती की बात करें तो आज आपको इस आर्टिकल में हम बताएंगे की मूंगफली की खेती कैसे करें? और मूंगफली की खेती के बारे में आपको काफी जानकारी प्रदान करेंगे। मूंगफली की खेती में ज्यादा उपज पाने के लिए यह पोस्ट अच्छी तरह से पूरा पढ़ें-

Mungfali ki kheti
Mungfali ki kheti

Mungfali ki kheti

अगर मूंगफली की खेती की बात करें तो मूंगफली भारत की प्रमुख महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। यह गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाया जाता है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी इसे बहुत महत्वपूर्ण फसल माना जाता है।

राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है। इसकी औसत उपज 1963 किग्रा प्रति हेक्टेयर है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत अनुसंधान संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत तकनीक जैसे उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई और खरपतवार नियंत्रण आदि विकसित किए हैं, जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

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मिट्टी और जमीन की तैयारी

मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, फिर भी इसकी अच्छी तैयारी के लिए कैल्शियम, कार्बनिक पदार्थ युक्त अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का pH मान 6.0 से 8.0 होता है।

मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 बार हैरो चलाएँ, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इस स्तर के बाद खेत में एक पाटे का प्रयोग करें ताकि नमी को जमा किया जा सके। खेत की अंतिम तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए।

भूमि उपचार

मूंगफली की फसल में सफेद लटों और दीमकों का प्रकोप मुख्य रूप से होता है। अत: अंतिम जुताई के समय भूमि को फोरेट 10 ग्राम या कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करें।

दीमक के प्रकोप को कम करने के लिए खेत की पूरी सफाई जैसे पिछली फसलों के डंठल को खेत से हटा देना चाहिए और खेत में कच्ची गोबर की खाद नहीं डालनी चाहिए।

जिन क्षेत्रों में बढ़ी हुई बीमारी की समस्या है, वहां 50 किग्रा. गोबर के सड़े हुए 2 किलो ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशक को अंतिम जुताई के समय एक प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाना चाहिए।

खाद और उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर की गई अनुशंसाओं के अनुसार खाद एवं उर्वरक की मात्रा सुनिश्चित की जाए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिए खेत की तैयारी के समय 5 टन अच्छी तरह सड़ी गाय का गोबर प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिला देना चाहिए।

मूंगफली में सल्फर का विशेष महत्व है, इसलिए सल्फर की आपूर्ति का सस्ता स्रोत जिप्सम है। 250 किलो जिप्सम बुवाई से पहले अंतिम तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर मात्रा की दर से प्रयोग करें।

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बिजदार

मूंगफली की 100 किलो गुच्छी किस्में और फैलने वाली और अर्ध-फैलाने वाली बीज प्रजातियाँ 80 किलो प्रति हेक्टेयर प्रयोग उत्तम पाया गया है।

बीज उपचार

बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए।

बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।

बुवाई की विधि

मूंगफली की बुवाई जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में की जाती है। मूंगफली की खेती में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर है। और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. रखना चाहिए।

विस्तारित और अर्ध-विस्तारित किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी है। और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 सेमी. रखना चाहिए

Mungfali ki kheti – मूंगफली की खेती कैसे करें?

खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कम से कम एक बार निराई अवश्य करनी चाहिए। इससे जड़ों का फैलाव तो अच्छा होता ही है साथ ही मिट्टी में हवा का संचार भी बढ़ता है।

मूंगफली की खेती में मिटटी चढ़ाने वाला काम अपने आप हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह काम कोलपा या हाथ के पहिये से करना चाहिए।

रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है।

खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।

सिंचाई

मूंगफली वर्षा पर आधारित फसल है, इसलिए सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। मूँगफली की फसल में वृद्धि की चार अवस्थाएँ- प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, पुष्पन, पेगिंग और फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। खेत में आवश्यकता से अधिक पानी तुरंत हटा देना चाहिए, अन्यथा वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

कीट रोकथाम

सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।

दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।

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रोगों की रोकथाम

मूंगफली में टिक्का, कॉलर और तना सड़न और रोसेट रोग प्रमुख प्रकोप हैं।

  • टिक्का के लक्षण दिखाई देने पर इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • रोजेट एक विषाणु जनित रोग है, रोकने के लिए इमिडाक्लोप्रिड के घोल का 0.5 मिली/लीटर पानी की मात्रा के साथ छिड़काव करें।

खुदाई और भंडारण

जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर टैनिन का रंग फीका पड़ जाए और बीज का खोल रंगीन हो जाए तो हल्की सिंचाई करके खेत की खुदाई करें और फलियों को पौधों से अलग कर दें।

मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाए रखने के लिए इसे खुदाई के बाद सावधानी से सुखाना चाहिए। भंडारण से पहले पके हुए अनाज में नमी की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

मूंगफली की खेती कब करनी चाहिए?

Mungfali ki kheti :- 15 जून से 15 जुलाई के मध्य

मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

Mungfali ki kheti :- गुजरात

मूंगफली एक बीघा में कितनी होती है?

Mungfali ki kheti :- 6 से 7 किवंटल

अंतिम शब्द

किसान भाइयो आपको इस पोस्ट में हमने बताया है की मूंगफली की खेती कैसे करें? और आपको मूंगफली की खेती की पूरी जानकारी दी है। अगर पोस्ट पसंद आया तो कमेंट करें और अपने दोस्तों को भी शेयर करें ताकि उनक भी मूंगफली की खेती के बारे में जानकारी मिले। धन्यवाद, जय जवान जय किसान।

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