Choudhary Cast – चौधरी कितने प्रकार के होते हैं?
Choudhary का अर्थ होता है प्रधान मुखिया जो कि गांव और समाज में न्याय दिलाने का कार्य करता है एवं अन्याय से लड़ता है । चौधरी एक दानी, त्यागी और महान जाति विशेष वर्ग है।

चौधरी
यह उपाधि केवल मुगलकाल से ही प्रचलित है। इसका अर्थ भी ‘प्रमुख’ है। बादशाहों ने प्रमुख वंशों व व्यक्तियों को यह उपाधि दी थी।
भरतपुर राजपरिवार के रिश्तेदारों, मथुरा के नौवार, हंगा, खड़ई गोत्र, मेरठ एवं अम्बाला कमिश्नरी के सभी जाटों को चौधरी कहलाने का गौरव प्राप्त है। बिजनौर में बारह गांव – बिजनौर, झालो, कुम्हेड़ा, आलमसराय, वलदिया, इस्मायलपुर, नांगल, सुवाहेड़ी, कीरतपुर, आदमपुर आदि के जाट चौधरी कहलाते आये हैं। हरयाणा के सब हिन्दू जाट और पंजाब में हिन्दू व मुसलमान जाट भी चौधरी कहे जाते हैं।
चौधरी के साथ साहब भी कहलाने का गौरव जाटों को प्राप्त है। आम बातचीत करते समय जाट को चौधरी साहब कहकर पुकारा जाता है। चौधरी शब्द सुनते ही ‘जाट’ का बोध हो जाता है। चौधरी शब्द की बड़ी प्रतिष्ठा है। यहां तक कि ‘सर’ की ऊंची उपाधि मिलने पर भी सर छोटूराम को सर चौधरी छोटूराम कहा जाता है।
इसी प्रकार चौधरी कहलाने वाले और भी हैं जैसे – सर सेठ छाजूराम जी चौधरी, सर चौधरी शहाबुद्दीन साहब विधानसभा अध्यक्ष, सर चौधरी जफरुल्ला खां (जाट गोत्र शाही), चीफ जज फेडरेल कोर्ट, राव बहादुर कैप्टन चौधरी लालचन्द जी आदि।
फतेहपुर के दीक्षित, सहारनपुर-मेरठ के सभी राजपूत, कानपुर की घाटमपुर तहसील के ब्राह्मण तिवारी, शिकारपुर-बुलन्दशहर के रईस ब्राह्मण, बंगाल के कायस्थों का एक दल, यू० पी० के तगा, गूजर, अहीर मण्डियों के प्रमुख वैश्य भी चौधरी कहलाते हैं।
इसी तरह हिन्दुओं की बहुत-सी अन्य जातियां भी अपने पुत्र व पुत्री के ससुर को या अपने सम्बन्धी को सम्मान के तौर पर चौधरी कह दिया करते हैं जो कि उनकी यह स्थायी उपाधि नहीं है।
Godara Caste की उत्पत्ति और इतिहास
आखिर कौन होते है चौधरी
उत्तरी भारत के गुर्जर जैसे ताकतवर समुदाए द्वारा दिल्ली एनसीआर क्षेत्र , जम्मू & कश्मीर , पंजाब , उत्तराखंड , हिमाचल , पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि में चौधरी को एक उपनाम के रूप में गुर्जर जैसी शक्तिशाली जाति इस चौधरी शब्द को इस्तेमाल करती आई है, और इन क्षेत्रों में लोग सम्मान से गुर्जरों को चौधरी साहब कहकर पुकारते हैं, ये गुर्जर चौधरीयों का प्यार व रुतबा हैं कि लोग चौधरी साहब कहकर मान सम्मान देते आये हैं।
दरअसल चौधरी इंडो-आर्यन भाषाओं का एक शब्द है, जिसका अर्थ है “चार धारक” परंपरागत रूप से, इस शब्द का उपयोग एक मूल स्थान के स्वामित्व को दर्शाती शीर्षक के रूप में किया जाता है, लेकिन समकालीन उपयोग में इसे प्रायः उपनाम या शीर्षक के रूप में लिया जाता है।
अलग-अलग क्षेत्रों में शब्द की वर्तनी भिन्न होती है। कुछ मामलों में इसका अर्थ “शक्ति” भी हो सकता है| आंध्र प्रदेश में, चौधरी शीर्षक का उपयोग कम्मा जाति द्वारा किया जाता है। यह आमतौर पर भारत के अन्य भागों में शीर्षक के अन्य उपयोगकर्ताओं से अंतर करने के लिए चौधरी के रूप में वर्णित है।
बिहार में, चौधरी बड़े पैतृक भूमि के मालिक हैं। बिहार और बंगाल के उत्तरी और पूर्वी भारतीय राज्यों में, कुलीन ब्राह्मणों और कुछ मुस्लिम तलकुमार परिवारों का शीर्षक उपयोग किया जाता है।
बंगाली जाति समूह के साथ कायास्थ कनेक्शन निजामी समय में भी इस शीर्षक का इस्तेमाल करते थे। उत्तर भारतीय राज्यों जैसे हरियाणा , उत्तर प्रदेश में, ये शीर्षक का उपयोग विभिन्न जाति के लोगों द्वारा विभिन्न जातीय समूहों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
हालांकि,यह गुर्जर,जाट, त्यागी,कुर्मी, अहीर, राजपूत, कंबोज, सुलेरिया और सैनी द्वारा भी उपयोग किया जाता है। पाकिस्तान में, यह शीर्षक भूमिगत जातियों के सदस्यों द्वारा किया जाता है जैसे इनमे प्रमुख रुप से गुज्जर जाति द्वारा चौधराहट प्राप्त हैं।
सबसे प्रारंभिक लिखित संदर्भ चौधरी शब्द 15 वीं शताब्दी से हैं, जब यह शीर्षक दिल्ली के सल्तनत के सुल्तानों द्वारा भारतीय मूल के अपने सैन्य अमीरों पर प्रदान किया गया था। मुगल काल के दौरान चौधरी शीर्षक मुगल सम्राटों के रूप में महत्वपूर्ण बना हुआ था, क्योंकि मुगल सम्राटों ने इसे कुछ विशेषाधिकार प्राप्त तालु्क्दार पर शुरू किया था।
शुरू में पंजाब क्षेत्र में, और फिर उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में। इस काल के दौरान एक तालुका या जिले में आमतौर पर 84 गांव और एक केंद्रीय शहर शामिल थे। तालकुदार यानि चौधरी को टैक्स एकत्र करना, कानून और व्यवस्था बनाए रखना और प्रांतीय सरकार को सैन्य आपूर्ति और जनशक्ति प्रदान करना आवश्यक था।
ज्यादातर मामलों में तालुुखदार एकत्रित राजस्व का दसवां हिस्सा बनाए रखने के हकदार थे। हालांकि, कुछ विशेषाधिकार प्राप्त तलकुखदार एक चौथाई के हकदार थे और इसलिए उन्हें चौधरी कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ “चौथा भाग का स्वामी” है।
प्रजापति समाज का इतिहास और उत्पत्ति
जाट सामाज भी जो मुख्य रूप से हरयीणा, पश्चिमी उतर प्रदेश अदि जगह पर रहते है चौधरी को नाम के आगे और पीछे दोनों तरह से इस्तेमाल करते है , जैसे देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह जी त्यागी समुदाय , जो पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में एक बडे जमीनों के मालिक है, का उपयोग “चौधरी” शीर्षक के रूप में करते है।
चौधरी को उपनाम के रूप में भी तटीय आंध्र प्रदेश के कम्मा द्वारा उपयोग किया जाता है। 16 वीं शताब्दी के दौरान, गोलकुंडा नवाब इब्राहिम कुतुब शाह ने आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
उनके मराठा कमांडर राय व राओ ने 497 गांवों में देशमुख और चौधरी के रूप में काममा की नियुक्ति की, तटीय आंध्र प्रदेश में केमास के लिए “चौधरी” शीर्षक के प्रयोग की शुरुआत की।
यद्यपि शीर्षक ने अपनी मूल विशिष्टता खो दी है, दोनों भारतीय और पाकिस्तानी पंजाब क्षेत्रों में, Choudhary को कुछ गांवों और छोटे शहरों में एक जनजाति का नेता माना जाता है। चौधरी परिवार के पुरुष सदस्य उपन्यास “सीएच” का उपयोग करने के हकदार हैं, चौधरी का संक्षिप्त नाम जो उनके पहले नाम से पहले शिष्टाचार के शीर्षक के तौर पर काम करता है।
उत्तरी और पूर्वी भारतीय राज्यों में बिहार और बंगाल में, यह शीर्षक अभी भी ब्राह्मणों और कुछ मुस्लिम परिवारों द्वारा उपयोग किया जाता है। रॉय या चौधरी का इस्तेमाल बंगाल व (बांग्लादेश) में अनको ताकतवर जातियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।
तो ये सब आपके समक्ष चौधरी शब्द की जानकारी दी गयी व हमे ये देखने को मिला की सम्पूर्ण भारतवर्ष में सदियों से विभिन्न जातियों द्वारा इस शब्द का प्रयोग किया जा रहा हैं जो उनके अपने अपने क्षेत्र की चौधराहट को दर्शाता हैं|`
Jaat is choudhary, or bhaki sab jhut hai. 🤫only jaat🤫
Sahi khaa bhai “Rola choudhar ka chalee or choudhar hai Jaton ki”…
Bhains chor bhi choudhary ban gaye😂😂
Hnm bhai ✌🏻😂 rolla chaudhar ka or chaudhar se jaata ki 😌✌🏻
Rajput
Choudhary 😈😈